“क्या महिलाओं के खाते में 10-10 हज़ार रुपये डालने से Bihar चुनाव में मिलेगा फायदा?”

चुनावी माहौल में अक्सर ऐसी योजनाएँ सामने आती हैं जो सीधे महिलाओं को आकर्षित करने वाली लगती हैं। बिहार में हाल ही में एक ऐसी ही योजना सामने आई है जिसमें महिलाओं के बैंक खाते में एक-एक ₹10,000 की राशि जमा करने का प्रस्ताव है। आइए समझते हैं कि इस कदम का क्या मकसद हो सकता है, क्या यह वाकई महिलाओं के लिए लाभदायक है, और चुनावी हिसाब से इसे कितनी ताकत मिल सकती है।

क्या है यह प्रस्ताव

राज्य सरकार ने Mukhyamantri Mahila Rojgar Yojana नामक योजना के तहत महिलाओं को पहली कड़ी में ₹10,000 देने का प्रस्ताव रखा है, ताकि वे स्वरोजगार या छोटे-उद्यम की ओर बढ़ सकें।

इसके बाद की कड़ी में, यदि उद्यम काम करे तो महिलाओं को ₹2 लाख तक की अतिरिक्त सहायता देने की संभावना भी है।

इस तरह, एक-एक महिला को एक-एक खाते में जलदी राशि देने का प्रस्ताव चुनाव के पहले चर्चा में आया है।

महिलाओं को होने वाला प्रत्यक्ष लाभ

1. तत्काल नकदी सहायता – जिन महिलाओं के पास बहुत साधन नहीं हैं, उन्हें तुरंत एक छोटी राशि मिल सकती है, जो किसी छोटे उद्यम की शुरुआत में काम आ सकती है।

2. स्वरोजगार-उत्साह – इसका उद्देश्य है महिलाओं को केवल लाभार्थी बनाना नहीं बल्कि उद्यमी बनाना, ताकि उन्हें लंबे समय तक लाभ हो।

3. वोटिंग ब्लॉक के रूप में सशक्तिकरण – आर्थिक रूप से सक्रिय महिलाओं का पूरा परिवार, सामाजिक-आर्थिक स्थिति में अंतर महसूस कर सकता है।

लेकिन… क्या चुनौतियाँ और सवाल भी हैं?

1. अस्थायी सहायता का जोखिम – सिर्फ एक-एक बार ₹10,000 मिलना बड़ी बात है, लेकिन क्या वो मदद स्थाई बन पाएगी? यदि बाद की सहायता नहीं मिली या उद्यम चल नहीं पाया, तो फिर क्या होगा?

2. योजना का चुनावी इस्तेमाल – कई विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह की नकद पेमेंट्स सिर्फ चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं, न कि दीर्घ-कालीन सशक्तिकरण का इंजन।

3. राज्य की अर्थ-व्यवस्था पर दबाव – बिहार जैसी राज्य में जहाँ राजस्व सीमित है, इन बड़े पैकेजों के लिये बजट में भारी चुनौती होती है।

4. क्रियान्वयन की चुनौतियाँ – बैंक खाते, पात्रता, आवेदन प्रक्रिया, बाद में उद्यम पर ग्रांट अवार्ड करना — ये सब काम आसान नहीं होंगे, खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में।

5. महिलाओं की निर्णय-शक्ति – सिर्फ राशि देना काफी नहीं; महिलाओं को प्रशिक्षण, बाजार पहुँचना, नेटवर्किंग आदि की जरूरत है ताकि वे इस राशि को सही दिशा में उपयोग कर सकें।

चुनावी-दृष्टिकोण से क्या फर्क पड़ सकता है?

सर्वेक्षण बताते हैं कि महिलाओं में इस तरह की योजना के प्रति जागरूकता काफी है और इसे वोटिंग ध्रुवीकरण का आधार मिल सकता है। उदाहरण के लिए, लगभग 85 % महिलाओं ने इस स्कीम की जानकारी होने का दावा किया है।

राजनीतिक पार्टी-ग्रुप्स को पता है कि महिलाओं का वोट अब निर्णायक हो गया है; इसलिए इस तरह की जनकल्याण योजनाएँ रणनीतिक तौर पर बहुत असरदार हो सकती हैं।

लेकिन यह भी सच है कि यदि यह योजना सिर्फ वोट बैंक के लिए हो और महिलाओं को वास्तविक लाभ न पहुँचे, तो उसका असर उल्टा भी हो सकता है — असंतुष्टि का रूप ले सकता है।

तो, सवाल यह है कि “क्या महिलाओं के खाते में ₹10,000 डालने से बिहार चुनाव में वाकई फायदा मिलेगा?” — मेरा जवाब होगा ‘हाँ, लेकिन सीमित रूप से और अस्थायी तौर पर’। कारण यह हैं:

इस पहल से तुरंत तक महिलाओं का ध्यान मिलेगा, आर्थिक हल्की राहत मिलेगी, और राजनीतिक रूप से भी यह संदेश जाएगा कि “महिलाओं को हम देख रहे हैं”।

लेकिन दीर्घ-कालीन लाभ तभी संभव है जब इस राशि के बाद भी सपोर्ट सिस्टम हो — प्रशिक्षण, उद्यम अवसर, बाजार पहुँच, अतिरिक्त वित्तीय सहायता।

यदि योजना सिर्फ चुनावी वादा बनकर रह जाए और समय के साथ पीछे हट जाए, तो महिलाओं में विश्वास टूट सकता है, और वोटिंग व्यवहार में बदलाव आ सकता है।

साथ ही, राज्य की अर्थ-व्यवस्था और बजट पर दबाव बढ़ना आसान है; यदि यह दबाव जटिलताओं में बदल जाए तो पॉलिसी का असर घट सकता है।