क्या है SIR?
SIR यानि “Special Intensive Revision” एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें मतदाता सूची को बड़े पैमाने पर पुनः जांचा-परखा जाना है — इसमें नाम, पते, पहचान-दस्तावेज आदि का सत्यापन करना शामिल है। सेक्टर-बाय-सेक्टर यह प्रक्रिया बंगाल में चलाए जाने लगी है और इसे इस साल के विधानसभा चुनाव के पूर्व एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
बंगाल में शुरुआत और इसकी समयरेखा
बंगाल में इस गतिविधि की शुरुआत 4 नवंबर 2025 से हो रही है।
इस प्रक्रिया के तहत बूथ-स्तर के अधिकारी (BLOs) घर-घर जाकर नामांकन फॉर्म वितरित/भरण करेंगे।
प्रशिक्षण सत्र में कुछ BLOs ने अपने कर्तव्यों, सुरक्षा तथा आधिकारिक दर्जा को लेकर विरोध दर्ज कराया है।
मेन मुद्दे: विरोध क्यों?
टीएमसी, कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया को राजनीतिक उद्देश्य से पहले से तैयार किया गया है, विशेषकर आगामी राज्य विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर। उनका आरोप है कि इस SIR के माध्यम से असली मतदाता-अधिकारियों को बाहर रखा जा सकता है या उनकी नाममात्र की वोटिंग सूची से हटा दिया जा सकता है।
यहाँ कुछ खास चिंताएँ हैं:
प्रक्रिया की तेजी और समय-मर्यादा को उचित नहीं माना जा रहा है।
दस्तावेजों और पहचान के लिहाज़ से प्रक्रिया को जटिल माना जा रहा है।
BLOs ने सुरक्षा तथा कार्यालयीय स्थिति से जुड़ी मांगें उठाई हैं।
विपक्ष की कार्रवाई: रैली और प्रदर्शन
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस प्रक्रिया के खिलाफ कोलकाता में बड़ी रैली का नेतृत्व किया। रैली में हजारों समर्थक शामिल थे जिन्होंने SIR को “मौन, अदृश्य छेड़खानी” कहा।
रैली का प्रमुख संदेश यह था कि अगर एक भी वास्तविक मतदाता इस प्रक्रिया में हटाया गया, तो विरोध और तेज होगा।
शासकीय पक्ष क्या कह रहा है?
ईसीआई एवं भाजपा का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाना है — ताकि डुप्लीकेट वोटर, मृतक या प्रवासी नामों को हटाया जा सके।
भाजपा का दावा है कि बंगाल में मतदाता सूची में अवैध नामों की वजह से सही-सही प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है।
भावी संकेत और जनता के लिए क्या मायने रखता है?
इस पूरे मामले का मतलब है कि हर उस नागरिक को अपनी स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है, जिसने हाल-ही में पते बदले हों या मतदाता सूची में नाम दर्ज करवाया हो। यदि कोई नाम हटाया गया या न हो, तो आप समय रहते अपने अधिकार के लिए हाथ उठा सकते हैं।
राजनीतिक रूप से यह प्रक्रिया अगले विधानसभा चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है — क्योंकि वोटिंग सूची से संबंधित परिवर्तन सीधे-सीधे मतगणना को प्रभावित कर सकते हैं।