घोषणा पत्र के मुख्य वादे:
रोज़गार: 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा — ताकि बिहार के युवाओं को रोज़गार की तलाश में बाहर न जाना पड़े।
शिक्षा: सरकारी स्कूलों-कॉलेजों की स्थिति सुधारना, नए शिक्षकों की भर्ती और डिजिटल एजुकेशन को बढ़ावा देना।
किसान: किसानों की आय दोगुनी करने और सिंचाई व एमएसपी की सुविधा मजबूत करने की बात।
महिलाएं: महिलाओं की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए नई योजनाओं की घोषणा।
स्वास्थ्य: हर ज़िले में आधुनिक अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने का भरोसा।
तेजस्वी का कहना है कि ये घोषणाएं सिर्फ चुनावी वादे नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य की योजना हैं। वो कहते हैं, “अब वक्त है नई सोच का, जो सिर्फ राजनीति नहीं बल्कि परिवर्तन लाए।”
लेकिन जनता अब पहले जैसी नहीं रही — लोग अब वादों से ज़्यादा नतीजे देखना चाहते हैं। बिहार ने बहुत से वादे सुने हैं जो पूरे नहीं हुए, इसलिए इस बार जनता इंतज़ार में है कि तेजस्वी की बातें ज़मीन पर उतरती हैं या नहीं।
युवा वर्ग पर असर:
तेजस्वी का घोषणा पत्र सीधे युवाओं को टारगेट करता है। बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए अगर वादे पूरे होते हैं, तो ये राज्य की तस्वीर बदल सकता है।
आख़िर में बात वही — तेजस्वी का घोषणा पत्र उम्मीदों से भरा है, लेकिन जनता अब भावनाओं से नहीं, हकीकत से वोट करती है। अगर तेजस्वी अपने वादों को हकीकत में बदलते हैं, तो बिहार में एक नया दौर शुरू हो सकता है। वरना, जनता का भरोसा फिर से टूट जाएगा।