बिहार की राजनीति हमेशा से ही उलझनों, बदलावों और नए प्रयोगों की ज़मीन रही है। इसी ज़मीन पर कुछ साल पहले शुरू हुआ था प्रशांत किशोर (PK) का जन सुराज आंदोलन, जिसे उन्होंने “जनता के नेतृत्व में नई राजनीति” का नाम दिया था। लेकिन अब लग रहा है कि यह आंदोलन अपनी रफ़्तार खो चुका है। हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों से साफ है कि PK को बड़ा झटका लगा है, और जन सुराज धीरे-धीरे बैकफुट पर जाता दिख रहा है।
शुरुआत में जनता से जुड़ने का अभियान
2022 में जब प्रशांत किशोर ने राजनीति में सक्रिय वापसी की, तो उन्होंने चुनावी रणनीतिकार की छवि छोड़कर खुद को एक जननेता के रूप में पेश करने की कोशिश की।
“जन सुराज यात्रा” के नाम से उन्होंने एक पैदल यात्रा शुरू की, जिसका मकसद था — बिहार के हर जिले में जाकर जनता की समस्याएँ सुनना और एक नई राजनीतिक सोच तैयार करना।
उनकी यह यात्रा कुछ समय तक चर्चा में रही। गाँव-गाँव जाकर PK ने लोगों से संवाद किया, बेरोज़गारी, शिक्षा, और विकास जैसे मुद्दों पर बात की। शुरू में लोगों में उम्मीदें भी जगीं कि शायद यह एक नई राजनीति की शुरुआत होगी।
लेकिन फिर क्यों आई रुकावट?
धीरे-धीरे जन सुराज आंदोलन की रफ़्तार थमने लगी।
पहला कारण था — स्पष्ट नेतृत्व और संगठन की कमी।
PK ने बार-बार कहा कि वह “राजनीति नहीं, आंदोलन” चला रहे हैं, लेकिन जनता को दिशा चाहिए थी — कि क्या यह पार्टी बनेगी? चुनाव लड़ेगी? या सिर्फ़ विचार मंच रहेगा?
दूसरा कारण — टीम के भीतर मतभेद।
कई पुराने सहयोगी, जो शुरू में उनके साथ थे, धीरे-धीरे किनारे होते चले गए। कुछ ने तो खुलेआम कहा कि “PK के फैसले एकतरफा होते हैं”, जिससे जन सुराज की विश्वसनीयता को झटका लगा।
सबसे बड़ा मुद्दा: हाल ही में तीन उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया, और इस पर PK ने बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया। उनका आरोप है कि बीजेपी की राजनीतिक चालों के चलते ये उम्मीदवार पीछे हट गए। यह घटना जन सुराज के लिए बड़ा झटका साबित हुई और आंदोलन की स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए।
चुनावी समीकरण में पिछड़ता जन सुराज
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं, लेकिन अब तक PK ने कोई ठोस राजनीतिक गठजोड़ या रणनीति नहीं दिखाई।
जहाँ NDA और महागठबंधन दोनों अपने-अपने समीकरण मज़बूत कर रहे हैं, वहीं जन सुराज का कोई स्पष्ट चेहरा या एजेंडा नज़र नहीं आ रहा।
कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि “PK ने जनता से जुड़ने का सही प्रयास किया, लेकिन संगठन बनाने में देर कर दी।”
अब जब चुनाव करीब हैं, तो बिना किसी मजबूत संरचना के मैदान में उतरना आसान नहीं होगा।
जन सुराज का भविष्य क्या?
फिलहाल स्थिति यह है कि PK को अपने आंदोलन को पुनर्जीवित करने की बड़ी चुनौती है।
अगर उन्होंने आने वाले महीनों में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया — जैसे पार्टी की घोषणा, गठबंधन या नया रोडमैप — तो यह आंदोलन सिर्फ़ “एक कोशिश” बनकर रह जाएगा।
बिहार की राजनीति में जनता आज भी बदलाव चाहती है, लेकिन वह बदलाव सिर्फ़ बातों से नहीं, विकल्प से आता है।
PK के पास मौका अब भी है, लेकिन वक्त कम है।
कभी बिहार के युवाओं की उम्मीद बने प्रशांत किशोर आज जन सुराज आंदोलन को संभालने में संघर्ष कर रहे हैं।
एक तरफ़ राज्य की राजनीति दो ध्रुवों में बंटी हुई है, वहीं PK का मंच धीरे-धीरे हाशिए पर जाता दिख रहा है।
अब देखना यह होगा कि क्या वह जन सुराज को फिर से पटरी पर ला पाएंगे, या फिर यह आंदोलन बिहार की राजनीति के इतिहास में एक “अधूरी कहानी” बनकर रह जाएगा।